शुक्रवार, 8 मई 2020

मैं तब प्यार के बारे में नहीं जानती थी- रामकुमार सिंह


"मैं तब प्यार के बारे में नहीं जानती थी!" - रामकुमार सिंह

साहित्य महोत्सव का मंच सजकर तैयार हो गया है।रंग बिरंगी रौशनी और जगमगाती हुई लाइटों से पूरा पांडाल प्रकाशित हो रहा है। वह साहित्य महोत्सव का मंच कम किसी ग्लैमरस शादी का मंच ज्यादा लग रहा है। दूसरे महानगरों से साहित्यकार बिजनेस क्लास की हवाई यात्रा करके राजधानी को पहुंच रहे हैं, जहां वे पूरे जोरों से सर्वहारा वर्ग की समस्यायों को लेकर विधवा विलाप करेंगे। पूरे सप्ताह भर का आयोजन है।सभी बुद्धिजीवी एक सप्ताह खुलकर मस्ती करेंगे।ये साहित्य महोत्सव और संगोष्ठियां ही तो हैं जहां पर ये बेचारे थोड़ी बहुत मस्ती कर लेते हैं वर्ना देश और दुनिया की चिंता करने से कब फुर्सत मिलती होगी बेचारों को।
जींस कुर्ता और स्लीपर में अभी-अभी गेस्ट हाउस से निकलकर आ रहे दो बुद्धिजीवियों को मैंने देखा।ये वही लोग थे जो एयरपोर्ट पर मँहगे सूट-बूट में नज़र आए थे।आते ही कायापलट क्यों कर ली इन्होंने? फिर थोड़ा सा सोचने पर मैं इस निर्णय पर पहुँचा कि हो न हो ये ड्रेसकोड इनकी साहित्यिक मजबूरी हो।
मैं भी बतौर युवा कथाकार  अपनी पत्नी सहित कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचा हुआ था।मेरी पत्नी को साहित्य और साहित्यकारों में कोई खास रुचि नहीं थी।बस उसे तरन्नुम में गाई जाने वाली कविता,गीत और ग़जल ही पसंद थीं।शाम के सत्र में मुझे अपनी कहानी का पाठ करना था।हम दोनों दोपहर में शापिंग करने का कार्यक्रम पहले ही बना चुके थे,लेकिन पत्नी के कहने पर कार्यक्रम रद्द करना पड़ा क्योंकि उसे कविता पाठ सुनना था।वही तो उसकी रुचि का कार्यक्रम था।भला उसे क्यों छोड़े।बाकी दिनों में तो उसे मजबूरी में सबको झेलना ही झेलना है।दोनों तेज़ कदमों से चलते हुए उस पांडाल में पहुंचे जहाँ काव्यपाठ चल रहा था।एक उम्रदराज़ कवि अपना कविता पाठ समाप्त कर चुके थे।तभी संचालक ने बड़े ही जोशोखरोश के साथ एक युवा कवयित्री को काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया और साथ ही यह भी बताना नहीं भूला कि वह अपना फलां वाला प्रेम गीत ज़रूर पढ़ें जो जयपुर में पढ़ा था।युवा कवयित्री की उम्र कोई तीस-बत्तीस साल रही होगी।भरा हुआ बदन और साँवली सलोनी सूरत।आँखों पर काले फ्रेम का नज़र का चश्मा।आगे के दोनों दांतों का आकार सामान्य से थोड़ा ज्यादा जो हँसने पर और भी ज्यादा नज़र आता।पर्पल कलर के सूट सलवार और दुपट्टे को सँभालती हुई वह मंच पर एक-एक पैर सँभालकर रखती हुई पहुँचती है।मंच की औपचारिकताओं को निभाते हुए वह सबसे पहले तो आयोजक महोदय का तहेदिल से शुक्रिया अदा करती है, क्योंकि उन्हीं की कृपा दृष्टि से उन्हें युवा कवयित्री बनने का अवसर मिला है।इससे पहले भी एक जगह उनका काव्य पाठ उन्होंने ही कराया था।श्रोताओं का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए उन्होंने एक मुक्तक अपने कोकिल कंठ से बयान किया।श्रोताओं में से कुछ लंपट किस्म के लोगों ने वाहवाही दी और कर्तल ध्वनि भी की।कवयित्री ने अपना मोहिनी मंत्र चलते हुए देखकर एक हल्की सी मुस्कान बिखेर दी।दूसरा मुक्तक जिसका विषय कालिज टाइम लव था को उसने और अधिक उत्साह के साथ पढ़ा।श्रोताओं का जोश भी हाई था।मैं अपनी पत्नी सहित सबसे पीछे एक कोने में बैठा हुआ चुपचाप अपने मोबाइल में आ रहे संदेशों को देख रहा था।मेरी पत्नी काव्यपाठ का लुत्फ़ उठा रही थी और जैसे ही तालियां बजतीं तो वह भी उसी उत्साह के साथ तालियां बजा देती।मैं उसके चेहरे की तरफ़ देखकर मुस्कुरा देता और फिर से अपने संदेश देखने लग जाता।अब उसने बताया कि वह उसी प्रेम गीत को पढ़ने वाली है जिसकी फरमाइश की गई थी।मेरी पत्नी ने मुझको लगभग झिंझोड़कर कहा कि अब ये गीत तो सुन लो या मोबाइल में ही घुसे रहोगे। मैंने मुस्कुराते हुए कहा-"जो आज्ञा देवी जी!आपका आदेश सिरोधार्य है।कवयित्री ने पहली लाइन लय,सुर और ताल को ध्यान में रखकर पढ़ी तो दर्शकों की तरफ़ से ग़जब का रिस्पाॅन्स मिला।वाहवाही और कर्तल ध्वनि से पांडाल गूंज उठा।मेरी पत्नी ने इस पर मेरी भी प्रतिक्रिया ये कहते हुए जाननी चाही कि ये बहुत ही अच्छा पाठ कर रही है।हाँ!हाँ! पाठ तो अच्छा ही करेगी क्योंकि संगीत की शिक्षा जो......... इतना कहते ही मैं चुप हो गया।मेरी पत्नी भी मेरा ये कथन नहीं सुन पाई।कवयित्री ने गीत को पूरा किया और श्रोताओं की तरफ से जबर्दस्त रिस्पॉन्स मिला।मेरी पत्नी उस कवयित्री की फैन हो गई और मुझसे जिद करने लगी कि मैं उससे उसे मिलवाकर लाऊं। मैंने कहा कि मैं इधर ही खड़ा हुआ हूँ ,तुम जाकर मिल लो ऐसी भीडभाड़ भी नहीं है।इतना सुनकर उसकी आँखों में लाल डोरे पड़ गए।ऐसा लगने लगा जैसे आँखों से खून टपकने ही वाला हो।बेचारा कथाकार मरता क्या न करता।वह कथाकार होगा अपने लिए और अपने पाठकों के लिए।अपनी पत्नी के लिए तो वह पति ही था, और उतना ही बेचारा जितना कि पति लोग हुआ करते हैं।अपने कुर्ते की जेब में पड़े काले चश्मे को आखों पर चढ़ाकर मैं पत्नी के साथ कवयित्री से मिलने चला गया।मैंने जाकर बताया कि मेरा साहित्यिक नाम राजेश ज्ञानी है और मैं कहानियाँ लिखता हूँ।ये मेरी पत्नी हैं नीलिमा जी।नीलिमा ने लपककर उससे हाथ मिलाया और उसके काव्यपाठ की बहुत ही तारीफ की।कवयित्री ने उसे धन्यवाद दिया।तभी मेरे फोन की घंटी बजी और मैं फोन रिसीव करके बात करने के उद्देश्य से उन दोनों को बातचीत करता हुआ छोड़कर चला गया।बातचीत खत्म करके मैं लौटा और अपनी पत्नी से शीघ्र ही चलने के लिए कहा क्योंकि मेरे कहानी पाठ का समय हो चुका था।दोनों महिलाओं ने एक दूसरे से हाथ मिलाते हुए बाय कहा।
शाम को अपनी कहानी का पाठ करके मैं अपने गेस्ट हाउस में पहुंचा। नीलिमा काव्यपाठ के बाद ही सिरदर्द के चलते कमरे पर आकर आराम फरमा रही थी।उसने मुझसे पूछा कि मेरा कहानी पाठ कैसा रहा? अच्छा रहा!आपने कौनसी कहानी सुनाई? ज़रूर आपने 'कसक' पढ़ी होगी!वह बहुत चर्चित कहानी है न आपकी!नहीं!वह नहीं पढ़ी!तो फिर कौनसी पढ़ी?वही कहानी जो मैंने आजतक नहीं लिखी।मतलब!ऐसे कैसे बिना लिखे कोई कहानी पढ़ सकता है!ये कोई आशु भाषण प्रतियोगिता तो है नहीं कि जो भी विषय मिल गया उसी पर पाँच मिनट बोल दिए।अरे यार आशु भाषण प्रतियोगिता न सही आशु कहानी प्रतियोगिता ही मान लो।ऐसे कैसे मान लूँ?आपको मेरी योग्यता पर संदेह है? नहीं तो!पर मैंने आपको कभी आशु कहानियों के सत्र में प्रतिभाग करते हुए नहीं देखा है।आज देख सकती थीं लेकिन तुमको सिरदर्द हो रहा था।यू आर सो अनलकी!आज मैंने वही कहानी सुनाई थी जो तुमने तब सुनी थी जब हमारी नयी-नयी शादी हुई थी।अच्छा वो कहानी जिसका बड़ा सा शीर्षक था।हाँ याद आया-"मैं तब प्यार के बारे में नहीं जानती थी!" यही शीर्षक था न?हाँ यही था!लेकिन ये कहानी तो तुमने मुझे तब सुनाई जब मैंने तुमसे तुम्हारी यूनिवर्सिटी वाली दोस्त के विषय में पूछा था।लेकिन वो कहानी इतने बड़े मंच पर तो नहीं सुनाई जानी चाहिए थी।उसमें तो ऐसा कुछ नहीं था।हाँ !तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो मैंने उस कहानी को थोड़ा सा विस्तार दे दिया है।वो लड़की जिसके विषय में मैंने तुमको बताया था कि उसे मैंने एमए के दिनों में प्रपोज किया था और उसने मेरे प्रेम प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।मैं उन दिनों बहुत दुखी रहता था और मुझे अवसाद ने घेर लिया था।किसी तरह में अवसाद से निकल गया।फिर पीएचडी के दौरान जब मैंने उससे पूछा था कि तुमने मेरे प्रेम प्रस्ताव को क्यों ठुकरा दिया था?तब उसने कहा था-"मैं तब प्यार के बारे में नहीं जानती थी!" ये सब रामायण तो मुझे मालूम है अब इससे आगे की कहानी बताओ क्या विस्तार किया है?बताता हूँ!बताता हूँ!थोड़ा धैर्य रखो डियर।वही लड़की जो तब प्यार के बारे में नहीं जानती थी।आजकल प्रेमगीत गाने लगी है।अच्छा!फिर आगे? थोड़ा सब्र करो मेरी जान!आगे की कहानी तब सुनाऊँगा जब तुम ट्राॅली बेग में पड़ी मेरी ब्राउन कलर की डायरी निकालकर दोगी।नीलिमा फुर्ती के साथ बैग खोलकर ब्राउन कलर की डायरी निकालकर उसकी तरफ बढ़ाती है।मुझे मत दो इसे खोलो!नहीं!नहीं!मैं भला कैसे खोल सकती हूं ये आपकी पर्सनल डायरी है।अरे यार मैं कह रहा हूँ कि खोलो तो फिर किस बात का संकोच।पेज नंबर 148 खोलो।नीलिमा धीरे-धीरे पेज पलटती है।एक सौ छियालिस! एक सौ सैंतालिस!एक सौ अड़तालिस!अब इसे पढ़ो।नीलिमा कवयित्री के गाए हुए प्रेम गीत की पंक्तियों को दोहराने लगती है।गीत के नीचे की पंक्ति के नीचे उसके पति का नाम राजेश कुमार एमए (उत्तरार्द्ध) दिनांक सहित बतौर लेखक अंकित था।नीलिमा राजेश की तरफ़ ईर्ष्या मिश्रित मुस्कान के साथ देख रही थी।तभी राजेश ने उसकी तरफ आँख मार दी और दोनों के ठहाकों से गेस्ट हाउस का कमरा नंबर आठ गूंज उठा।

- रामकुमार सिंह
शोधार्थी एएमयू हिन्दी विभाग एवं
युवा कथाकार

1 टिप्पणी:

  1. गहन संवेदनात्मक अनुभूति बनाम स्वानुभूति के अंतर्द्वंद से उपजी महत्वपूर्ण यथार्तपरक कहानी,वह तब प्रेम के बारे में नही जानती थी।

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