बुधवार, 26 अगस्त 2020

आलोचना से सँवरती है संस्था और व्यक्तित्त्व- अकरम क़ादरी

आलोचना से सँवरती है संस्था और व्यक्तित्त्व- अकरम क़ादरी

मुख़ालिफ़त से मेरी शख़्सियत सँवरती है।
मैं दुश्मनों का बड़ा एहतराम करता हूँ।।

बशीर बद्र ने यह शेर लिखते वक्त बहुत सोचा होगा लेकिन कभी यह नहीं समझा होगा कि ऐसा वक़्त आ जायेगा लोग एक-दूसरे की आलोचना करते वक़्त इतने व्यक्तिगत हो जाएंगे कि पर्सनल अटैक करेंगे जिसमे उनके घर, परिवार और निजी सम्बन्धो को भी लपेट देंगे फिर कुछ लोग ऐसे भी पैदा हो गए है कि जो तनक़ीद के नाम पर एक दूसरे के जान के प्यासे हो जाएंगे और मौत के घाट उतार देंगे। 
दरअसल अभी भी हमारे देश मे लोग आलोचना और व्यक्तिगत दुश्मनी में फ़र्क़ ही नहीं समझते है इसलिए वो ऐसे कदम उठा देते है जिससे किसी भी व्यक्ति का ज़मीर तक को रौंद देते है फिर वो सहिष्णुता को नहीं समझता है और ऐसा क़दम उठा लेता है जो सभ्य समाज के लिए सही नहीं है।
असली तनक़ीद वही है जिससे सामने वाले व्यक्ति को फ़ायदा हो आखिर आलोचना भी वही करता है जिसमे आपकी गलतियां पकड़ने का हुनर हो
जो आपको सही रास्ते पर लाने के लिए कोशिश करता हूँ।
आलोचना एवं सहिष्णुता का इतिहास इस देश का बहुत पुराना है क्योंकि जब कबीर काशी में बैठकर हिन्दू-मुस्लिम दोनो को सुनाते थे दोनो की कमियों पर बोलते थे लेकिन कभी भी किसी ने कुछ नहीं कहा आजकल अगर कोई, किसी व्यक्ति विशेष पर ज़रा सी बात कह दे तो वो मान-हानि का केस करने लगता है जबकि उसकी स्वयं की मान की हानि सवा रुपये से ज़्यादा नहीं होगी।
वर्तमान परिस्थिति में देश के जाने-माने वकील ह्यूमन एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण ने कुछ कह दिया तो उससे किसी संस्था की मान-हानि हो गयी जबकि मेरा देश बहुत विशाल एवं सहिष्णु है किसी एक दो ट्वीट से कुछ नहीं हो जाता है यह तो चलता ही रहता है जबकि दूसरी तरफ कानून में बोलने का अधिकार भी है। आप किसी संस्था की कानून संगत आलोचना कर सकते है जिससे उस संस्था में जो सुधरने, सही होने की गुंजाइश है वो ठीक हो सके और उससे अंततः देश को ही लाभ होगा। प्रशांत भूषण वो वकील है जिनके पिता शांति भूषण ने इंदिरा गांधी जैसी मज़बूत नेत्री को भी कोर्ट में खड़ा करा दिया था, प्रशांत भूषण देश के कई ऐसे मुद्दों पर जनहित याचिका डाल चुके है और उनको कामयाबी भी मिली है कांग्रेस की सरकार में टू जी स्पेक्ट्रम, कोयला घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला जैसे मुद्दों पर अन्ना हज़ारे के साथ सरकार का विरोध कर चुके है हालांकि इन मुद्दे पर कुछ हुआ नहीं ज्यादातर केस फ़र्ज़ी ही पाए गए लेकिन उनको लगता था कि इनमें कुछ घोटाला हुआ है तो जनपक्ष और देश की अच्छाई के लिए उन्होंने जनहित याचिका दाखिल की है। पिछले दिनो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक संस्था के मुद्दे पर भी वो अपनी राय दे चुके है और इसका विरोध करते है कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्था नहीं है। हालांकि यह केस अभी विचाराधीन है अंतिम फैसला माननीय कोर्ट का ही होगा। 
बिहार के डॉन शाहबुद्दीन जब जेल से बाहर आये थे तो प्रशांत भूषण ने ही जनहित याचिका डालकर उनको दोबारा जेल में पहुंचाया था। दरअसल वो हर मुद्दे का विरोध करते है जो उनको ग़लत और तर्कसंगत नहीं लगता है वो ह्यूमनिस्ट होने के कारण किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करते है ज़्यादातर केस में उन्होंने जनहित याचिका दाखिल की है और देश के हित में कार्य किए है अब बहुत लोगो के अलग अलग दृष्टिकोण हो सकते है वो दूसरा पहलू है हालांकि इसपर बहस होना चाहिए। 
प्रशांत भूषण पर माननीय कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है जो भी होगा वो सबको मानना पड़ेगा। लेकिन कोर्ट ने उनको तीन दिन सोचने समझने का मौका दिया और माफ़ी मांगने को भी कहा लेकिन उन्होंने कहा यदि मैं ग़लत होता तो माफी मांग लेता जब मैं ग़लत नहीं हूं तो माफी मांगने का कोई फ़ायदा ही नहीं है कोर्ट जो भी सज़ा देगा उसको मैं भुगतने को तैयार हूं। दूसरा उनका तर्क था कि अगर मैं हार मान जाऊंगा तो जो लोग सरकार की आलोचना करते है, लिखते है, बोलते है, उनका हौसला पस्त हो जाएगा और प्रतिरोध की आवाज़ बन्द हो जाएगी फिर एकछत्र राज चलेगा जिससे अंततः देश का नुकसान होगा मानवतावादी ढांचे में कमी आएगी। इसलिए मैं देश के खातिर कुछ भी सहने को तैयार हूं। हमें अपनी संस्थाओं को मजबूत करना है जिससे संविधान की रक्षा हो सके।

जय हिंद
अकरम क़ादरी
फ्रीलांसर एंड पॉलिटिकल एनालिस्ट

1 टिप्पणी:

  1. आपके लेख की सबसे बड़ी विशेषता धाराप्रवाह है।एक बार पढ़ने पर अंत तक पढ़ना ही पड़ता है और विचार समाज मे चल रही बाते अपने आप सामने आती जाती है।

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