उस्तादों ने इंसान बनने में मदद की- अकरम क़ादरी
"रचनात्मक अभिव्यक्ति और ज्ञान में आनंद जगाना शिक्षक की सर्वोच्च कला है" यह अल्बर्ट आइंस्टीन के शब्द है जिन्होंने बताने का प्रयत्न किया कि इंसान में रचनात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से ज्ञान के भंडार को गुरु हीं जगाता है, वो ही एक पत्थर इंसान को तराशने का कार्य करता है जिससे वो सभ्य समाज मे रहने के लायक हो जाये और समाज को मानवतावादी दृष्टिकोण से देखे और इंसाफ के लिए सदा आगे आये।
जिस प्रकार से आज शिक्षण संस्थानों में मशीन बनाने की जो प्रक्रिया चल रही है वो उसके एकदम ख़िलाफ़ हूं बल्कि यूं कहिए कि हर एक आदर्श शिक्षक इसके ख़िलाफ़ ही होगा। मेरे गुरुओं ने मुझे कभी मशीन बनने के लिए तैयार नहीं किया, बल्कि कुछ नया सोचने, समझने और लिखने के लिए प्रेरित किया जिसकी वजह से मैं लगातार कोशिश भी करता रहा।
आज इस समय किस उस्ताद के बारे में लिखूं सबने मुझे आगे बढ़ाने के लिए कोशिश की है बचपन में मेरे कस्बे के उस्ताद जहां से मेरी शुरुआती तालीम शुरू हुई उनमें हाजी इरफ़ान ख़ान साहब, हाजी रिज़वान ख़ान ने मुझे आगे बढाने के लिए कोशिश की उसके बाद उत्तराखंड के सैंट पैट्रिक के अध्यापकों में सिस्टर सैलिन, सिस्टर प्रेसी, राजेश सर, पंकज सर, ज्योत्सना मैम, रश्मि मैम, अलका मैम, पवन सर, रेनुका मैम, अबरार सर जैसे कुशल गुरुओं ने शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बहुत मन से पढ़ाया जिससे हमारा किशोरावस्था में सही विकास हो सका जिसकी वजह से लगातार आगे बढ़ने के लिए तत्पर है। उसके बाद लखनऊ क्रिश्चियन कॉलेज का सफर तय हुआ वहां के भी टीचर्स ने खूब आगे बढ़ाया, 2008 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेकर लिटरेचर में अपना कैरियर बनाने की सोची और आज उसी तरफ आगे बढ़ रहे है। स्नातक, स्नातकोत्तर करने के बाद एम. फिल. मौलाना आज़ाद उर्दू यूनिवर्सिटी हैदराबाद से करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जहां पर प्रोफेसर टीवी कट्टीमनी, डॉ. सेषु बाबू जी के कुशल मार्गदर्शन में अपना शुरुआती शोध पूरा किया जिसमें विशेष सहयोग मातातुल्य प्रोफेसर शकीला ख़ानम का रहा जिन्होंने अपने सही मार्गदर्शन में मुझे अच्छा शोध करने के लिए प्रेरित किया उसके बाद दोबारा एएमयू में पीएचडी के लिए लौटना हुआ तो प्रोफेसर अब्दुल अलीम सर, प्रोफेसर रमेश रावत, प्रोफेसर आशिक़ अली बलौत, प्रोफेसर मेराज अहमद सर, प्रोफेसर इफ्फत असग़र मैम ने भी पिछला शोधकार्य देखकर मुझे आगे बढ़ने के लिए, अच्छे शोध के लिए सहयोग दिया जिनका मैं शब्दो मे शुक्रिया अदा नहीं कर सकता हूँ उनका आजीवन ऋणी रहूंगा।
वर्तमान परिस्थिति में प्रोफेसर मेराज अहमद सर के कुशल मार्गदर्शन में पीएचडी सूरीनाम जैसे नए विषय पर कर रहा हूँ जिसमे वाङ्गमय पत्रिका के सम्पादक डॉ. फ़ीरोज़ ख़ान सर एवं डॉ. शगुफ़्ता नियाज़ मैम लेखन के प्रति मुझे बहुत सहयोग दिया, वक़्त, बेवक्त बहुत समझाया, डांटा छोटे भाई जैसा प्रेम दिया और कुछ नए विषयों पर लेखन के लिए प्रोत्साहित किया जिनके अथक सहयोग के कारण मैं तीन पुस्तकें जिसमे एक मौलिक और दो सम्पादित कर सका, फिलहाल कई संस्थाओं में काम कर रहा हूँ और वाङ्गमय का सहसंपादक हूं। देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओ में कमसेकम तीन दर्जन शोधालेख प्रकाशित हो चुके है। वैश्विक लेखिका यायावर, प्रेम की कवयित्री प्रोफेसर पुष्पिता अवस्थी ने मेरे शोध में भी बहुत सहयोग दिया है वो अनवरत रूप से मुझे समझाती रहती है किसी भी नए विषय पर लिखने के लिए आईडिया देती है। आजकल उन विषयों पर लिखने के लिए अधिक प्रोत्साहित करती है जिन विषयों पर कोई लिखना नहीं चाहता।
स्वयं की इस ज़िंदा लाश को मैं कंधे पर लेकर इन्हीं सब गुरुओं की बदौलत चल रहा हूं आगे भी उम्मीद करता हूँ कि यह मुझे सहयोग करेंगे जिसके लिए मैं जीवनभर शुक्रगुज़ार रहूंगा और एहसानमन्द करूँगा....आपकी दुआओं का आकांक्षी - अकरम क़ादरी
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